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वाजा॑य॒ स्वाहा॑ प्रस॒वाय॒ स्वाहा॑पि॒जाय॒ स्वाहा॒ क्रत॑वे॒ स्वाहा॒ वस॑वे॒ स्वाहा॑ह॒र्पत॑ये॒ स्वाहाह्ने॑ मु॒ग्धाय॒ स्वाहा॑ मु॒ग्धाय॒ वैनꣳशि॒नाय॒ स्वाहा॑ विन॒ꣳशिन॑ऽआन्त्याय॒नाय॒ स्वाहान्त्या॑य भौव॒नाय॒ स्वाहा॒ भुव॑नस्य॒ पत॑ये॒ स्वाहाधि॑पतये॒ स्वाहा॑ प्र॒जाप॑तये॒ स्वाहा॑। इ॒यं ते॒ राण्मि॒त्राय॑ य॒न्तासि॒ यम॑नऽऊ॒र्जे त्वा॒ वृष्ट्यै॑ त्वा प्र॒जानां॒ त्वाधि॑पत्याय ॥२८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वाजा॑य। स्वाहा॑। प्र॒स॒वायेति॑ प्रऽस॒वाय॑। स्वाहा॑। अ॒पि॒जाय॑। स्वाहा॑। क्रत॑वे। स्वाहा॑। वस॑वे। स्वाहा॑। अ॒ह॒र्पत॑ये। स्वाहा॑। अह्ने॑। मु॒ग्धाय॑ स्वाहा॑। मु॒ग्धाय॑। वै॒न॒ꣳशि॒नाय॑। स्वाहा॑। वि॒न॒ꣳशिन॒ इति॑ विन॒ꣳशिने॑। आ॒न्त्या॒य॒नाय॑। स्वाहा॑। आन्त्या॑य। भौ॒व॒नाय॑। स्वाहा॑। भुव॑नस्य। पत॑ये। स्वाहा॑। अधि॑पतय॒ इत्यधि॑ऽपतये। स्वाहा॑। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। स्वाहा॑। इ॒यम्। ते॒। राट्। मि॒त्राय॑। य॒न्ता। अ॒सि॒। यम॑नः। ऊ॒र्जे। त्वा॒। वृष्ट्यै॑। त्वा॒। प्र॒जाना॒मिति॑ प्र॒ऽजाना॑म्। त्वा॒। आधि॑पत्या॒येत्याधि॑ऽपत्याय ॥२८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:28


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कैसी वाणी का स्वीकार करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिस विद्वान् में (वाजाय) सङ्ग्राम के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (प्रसवाय) ऐश्वर्य वा सन्तानोत्पत्ति के अर्थ (स्वाहा) पुरुषार्थ बलयुक्त सत्य वाणी (अपिजाय) ग्रहण करने के अर्थ (स्वाहा) उत्तम क्रिया (क्रतवे) विज्ञान के लिये (स्वाहा) योगाभ्यासादि क्रिया (वसवे) निवास के लिये (स्वाहा) धनप्राप्ति कराने हारी क्रिया (अहर्पतये) दिनों के पालन करने के लिये (स्वाहा) कालविज्ञान को देने हारी क्रिया (अह्ने) दिन के लिये वा (मुग्धाय) मूढ़जन के लिये (स्वाहा) वैराग्ययुक्त क्रिया (मुग्धाय) मोह को प्राप्त हुए के लिये (वैनंशिनाय) विनाशी अर्थात् विनष्ट होनेहारे को जो बोध उसके लिये (स्वाहा) सत्य हितोपदेश करनेवाली वाणी (विनंशिने) विनाश होनेवाले स्वभाव के अर्थ वा (आन्त्यायनाय) अन्त में घर जिसका हो उसके लिये (स्वाहा) सत्य वाणी (आन्त्याय) नीच वर्ण में उत्पन्न हुए (भौवनाय) भुवन सम्बन्धी के लिये (स्वाहा) उत्तम उपदेश (भुवनस्य) जिस संसार में सब प्राणीमात्र होते हैं, उसके (पतये) स्वामी के अर्थ (स्वाहा) उत्तम वाणी (अधिपतये) पालनेवालों के अधिष्ठाता के अर्थ (स्वाहा) राजव्यवहार को जनाने हारी क्रिया तथा (प्रजापतये) प्रजा के पालन करनेवाले के अर्थ (स्वाहा) राजधर्म प्रकाश करनेहारी नीति स्वीकार की जाती है तथा जिस (ते) आप को (इयम्) यह (राट्) विशेष प्रकाशमान नीति है और जो (यमनः) अच्छे गुणों के ग्रहणकर्त्ता आप (मित्राय) मित्र के लिये (यन्ता) उचित सत्कार करनेहारे (असि) हैं, उन (त्वा) आप को (ऊर्जे) पराक्रम के लिये (त्वा) आपको (वृष्ट्यै) वर्षा के लिये और (त्वा) आपको (प्रजानाम्) पालन के योग्य प्रजाओं के (आधिपत्याय) अधिपति होने के लिये हम स्वीकार करते हैं ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धर्मयुक्त वाणी और क्रिया से सहित वर्त्तमान रहते हैं, वे सुखों को प्राप्त होते हैं और जो जितेन्द्रिय होते हैं, वे राज्य के पालन में समर्थ होते हैं ॥२८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कीदृशी वाक् स्वीकार्य्येत्याह ॥

अन्वय:

(वाजाय) सङ्ग्रामाय (स्वाहा) सत्या क्रिया (प्रसवाय) ऐश्वर्याय सन्तानोत्पादनाय वा (स्वाहा) पुरुषार्थबलयुक्ता सत्या वाक् (अपिजाय) स्वीकाराय (स्वाहा) साध्वी क्रिया (क्रतवे) विज्ञानाय (स्वाहा) योगाभ्यासादिक्रिया (वसवे) वासाय (स्वाहा) धनप्रापिका क्रिया (अहर्पतये) अह्नां पालकाय (स्वाहा) कालविज्ञापिता क्रिया (अह्ने) दिनाय (मुग्धाय) प्रापितमोहाय (स्वाहा) वैराग्ययुक्ता क्रिया (मुग्धाय) मोहं प्राप्ताय (वैनंशिनाय) विनष्टुं शीलं यस्य तस्यायं बोधस्तस्मै (स्वाहा) सत्योपदेशिका वाक् (विनंशिने) विनष्टुं शीलाय (आन्त्यायनाय) अन्ते भवमयनं यस्य स आन्त्यायनः स एव तस्मै (स्वाहा) सत्या वाणी (आन्त्याय) अन्ते भवायान्त्याय (भौवनाय) भुवनानामयं सम्बन्धी तस्मै (स्वाहा) सुष्ठूपदेशः (भुवनस्य) भवन्ति भूतानि यस्मिन् यस्य (पतये) स्वामिने (स्वाहा) उत्तमा वाक् (अधिपतये) पतीनां पालिकानामधिष्ठात्रे (स्वाहा) राजव्यवहारसूचिका क्रिया (प्रजापतये) प्रजारक्षकाय (स्वाहा) राजधर्मद्योतिका नीतिः (इयम्) नीतिः (ते) तव (राट्) या राजते सा (मित्राय) सुहृदे (यन्ता) नियामकः (असि) (यमनः) यस्सद्गुणान् यच्छति सः (ऊर्ज्जे) पराक्रमाय (त्वा) त्वाम् (वृष्ट्यै) वर्षणाय (त्वा) त्वाम् (प्रजानाम्) पालनीयानाम् (त्वा) त्वाम् (आधिपत्याय) अधिष्ठातृत्वाय ॥२८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - येन विदुषा वाजाय स्वाहा प्रसवाय स्वाहाऽपिजाय स्वाहा क्रतवे स्वाहा वसवे स्वाहाऽहर्पतये स्वाहाऽह्ने मुग्धाय स्वाहा मुग्धाय वैनंशिनाय स्वाहा विनंशिन आन्त्यायनाय स्वाहाऽऽन्त्याय भौवनाय स्वाहा भुवनस्य पतये स्वाहाऽधिपतये स्वाहा प्रजापतये स्वाहा स्वीक्रियते यस्य ते तवेयं राडस्ति यो यमनस्त्वं मित्राय यन्तासि तं त्वा त्वामूर्जे त्वा वृष्ट्यै त्वा प्रजानामाधिपत्याय च वयं स्वीकुर्वीमहि ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या धर्म्यवाक् क्रियाभ्यां सह प्रवर्त्तन्ते, ते सुखानि लभन्ते, ये जितेन्द्रियास्ते राज्यं रक्षितुं शक्नुवन्ति ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या माणसांची वाणी धर्मयुक्त असून, जे क्रियाशील असतात ते सुखी होतात व जी माणसे जितेंद्रिय असतात ती राज्याचे पालन करण्यास समर्थ असतात.